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VAISHALI KI NAGARVADHU | वैशाली की नगरवधू | (संपूर्ण संस्करण )
VAISHALI KI NAGARVADHU | वैशाली की नगरवधू | (संपूर्ण संस्करण )
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वैशाली की नगरवधू आचार्य चतुरसेन शास्त्री द्वारा रचित एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जो हिंदी साहित्य में एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह उपन्यास प्राचीन भारत की एक प्रसिद्ध गणिका अम्बपाली के जीवन पर आधारित है, जिसे वैशाली की नगरवधू कहा जाता था। उपन्यास की पृष्ठभूमि प्राचीन लिच्छवि गणराज्य की राजधानी वैशाली है, जहाँ गणतंत्र व्यवस्था थी और स्त्रियों को भी समाज में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। अम्बपाली, जो जन्म से राजकुमारी नहीं थी, अपनी अनुपम सौंदर्य, बुद्धिमता और कला के कारण नगरवधू घोषित की जाती है-एक ऐसी स्वी जो समाज की संपत्ति मानी जाती है और किसी एक पुरुष की नहीं हो सकती। उपन्यास में अम्बपाली के संघर्षपूर्ण जीवन को अत्यंत संवेदनशीलता और ऐतिहासिक सच्चाई के साथ चित्रित किया गया है। उसका जीवन वैभव और विलास से शुरू होकर अंततः वैराग्य और अध्यात्म की ओर अग्रसर होता है। यह भगवान बुद्ध की शरण में जाती है और अपने भोग विलासपूर्ण जीवन का त्याग कर साध्वी बन जाती है। इस उपन्यास के माध्यम से आचार्य चतुरसेन ने नारी की गरिमा, समाज की क्रूरता, राजनीति की चालाकियाँ और धर्म की महत्ता को उजागर किया है। भाषा गौली गंभीर, साहित्यिक और गद्य की उत्कृष्टता से परिपूर्ण है। वैशाली की नगरवधू न केवल एक ऐतिहासिक दस्तावेज है, बल्कि यह नारी मुक्ति, आत्म-गौरव और सामाजिक सोच में परिवर्तन की भी प्रेरणा देता है। यह उपन्यास आज भी पाठकों को आत्ममंथन और ऐतिहासिक बोध के लिए प्रेरित करता है।
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