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NEELAM JASOOS KARYALAY

SONA AUR KHOON - 3 | सोना और खून- 3 | (संपूर्ण संस्करण)

SONA AUR KHOON - 3 | सोना और खून- 3 | (संपूर्ण संस्करण)

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सोना और खून आचार्य चतुरसेन शास्त्री का एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक उपन्यास है भारतीय इतिहास के मध्यकालीन संघर्षों को अत्यंत प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करता है। यह उपन्यास विदेशी आक्रांताओं, विशेष रूप से तुकों और मुसलमानों के भारत में आक्रमण, सत्ता संघर्ष और उनके भारलेय संस्कृति पर प्रभाव को केंद्र में रखकर रचा गया है। इस उपन्यास का शीर्षक सोना और खून प्रतीकात्मक है- 'सोना' भारत की अपार समृद्धि का प्रतीक है, जबकि 'खून' उस समृद्धि को लूटने के लिए हुए रक्तपात, युद्ध और विनाश का संकेत है। आचार्य चतुरसेन ने इसमें इस बात को उजागर किया है कि किस तरह भारत की संपदा विदेशी हमलावरों को आकर्षित करती रही और किस प्रकार हमारे भीतर की सामाजिक और राजनीतिक कमजोरियों ने उन्हें यहाँ सफल होने में मदद की उपन्यास में इतिहास, राजनीति, युद्धनीति, कूटनीति, प्रेम, विश्वासघात और वीरता के प्रसंगों का समृद्ध चित्रण है। चतुरसेन की भाषा शैली शोधपूर्ण, प्रभावशाली और चित्रात्मक है, जिससे पाठक उन ऐतिहासिक कालखंडों को सजीव रूप में अनुभव करता है। सोना और खून केवल एक ऐतिहासिक दस्तावेज नहीं, बल्कि यह राष्ट्र चेतना, आत्मसम्मान और सांस्कृतिक जागरण का आह्वान भी है। यह उपन्यास पाठकों को यह सोचने पर मजबूर करता है कि भारत की ऐतिहासिक विफलताओं के पीछे केवल बाहरी शक्तियाँ नहीं, बल्कि आंतरिक विघटन और व्यक्तिगत स्वार्थ भी जिम्मेदार थे। यह कृति आज भी प्रासंगिक है और भारतीय इतिहास को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण साहित्यिक स्रोत मानी जाती है।

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