वयं रक्षाम: आचार्य चतुरसेन शास्त्री द्वारा रचित एक कालजयी और अत्यंत चर्चित ऐतिहासिक उपन्यास है, जो लंका के राजा रावण के दृष्टिकोण से रामायण की कथा को प्रस्तुत करता है। इस उपन्यास का शीर्षक वयं रक्षामः (अर्थात् हम राक्षस हैं) अपने आप में ही एक चुनौती है-या पाठको को पारंपरिक दृष्टिकोण से हटकर सोचने के लिए प्रेरित करता है। इस उपन्यास की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें रावण को एक विद्वान, वैज्ञानिक, शीर्यवान और नीति-निपुण शासक के रूप में चित्रित किया गया है। आचार्य चतुरसेन ने इस रचना के माध्यम से यह दिखाने का प्रयास किया है कि रावण कोई क्रूर राक्षस नहीं, बल्कि एक महान तपस्वी, शिवभक्त और राजनीति तथा आयुर्वेद का प्रकांड जाता था। वयं रक्षामः में रावण का जीवन, बचपन, शिक्षा, तपस्या, शिव से संबंध, लंका का निर्माण, राज्य संचालन, युद्धनीति और अंततः उसका पतन इन सभी पहलुओं का गहराई से वर्णन किया गया है। सीता हरण और राम-रावण युद्ध जैसे प्रसंगों को भी एक नए दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया गया है। यह उपन्यास केवल रामायण का पुनर्पाठ नाहीं, बल्कि पह मानवीय मूल्यों, शक्ति और धर्म के संघर्ष, तथा विजेता की दृष्टि से लिखे इतिहास पर प्रश्नचिन्ह है। इसमें यह भी दर्शाया गया है कि विजेता ही हमेशा सत्य का निर्धारण नहीं करता। आचार्य चतुरसेन की भाषा विद्वतापूर्ण, गंभीर और अत्यंत शोधपरक है। उन्होंने संस्कृत, आयुर्वेद, ज्योतिष, वेद और पुराणों का गहन अध्ययन कर इस उपन्यास को प्रामाणिकता प्रदान की है। वयं रक्षामः न केवल रावण के चरित्र का पुनर्मूल्यांकन करता है, बल्कि यह पाठक को इतिहास और धर्मग्रंथों को पुनः सोचने के लिए मजबूर कर देता है। यह कृति हिंदी साहित्य में एक क्रांतिकारी योगदान मानी जाती है।