Our History

नीलम जासूस कार्यालय की स्थापना 1959 में लाला सत्यपाल वार्ष्णेय ने द्वारा की गई थी जो कि एक प्रकाशक परिवार से ही संबंध रखते थे।  इनके पिता लाला गिरधारी लाल ने प्रकाशन का व्यवसाय 1919 में दिल्ली के खारी बावली में गिरधारी लाल थोक पुस्तकालय के नाम से शुरू किया था और उसी परंपरा को श्री सत्यपाल वार्ष्णेय ने आगे बढ़ाया।

1959 से 1969 तक सारे देश में नीलम जासूस कार्यालय के प्रकाशनों की धूम थी। यहां से तीन मासिक पत्रिकाएं प्रकाशित की जाती थी जिनके नाम थे- नीलम जासूस, राजेश और फिल्म अप्सरा। नीलम जासूस में वेद प्रकाश काम्बोज तथा राजेश में जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा प्रति माह उपन्यास लिखा करते थे। उन दिनों नीलम जासूस के कवर के डिज़ाइन आज के प्रतिष्ठित जासूसी उपन्यासकार सुरेंद्र मोहन पाठक बनाया करते थे। बाद में वह एक बड़े लेखक बने। मगर नीलम जासूस कार्यालय को यह श्रेय प्राप्त है कि उन्होंने सुरेंद्र मोहन पाठक का पहला उपन्यास ‘पुराने गुनाह नए गुनाहगार’ अपने यहां से प्रकाशित करके उन्हें मौका दिया था। बाद में कुमार कश्यप और रमेश चंद्र गुप्त चंद्रेश जैसे लेखकों भी इस संस्थान के लिए उपन्यास लिखे।

2020 में नीलम जासूस कार्यालय का दोबारा शुभारंभ श्री सत्यपाल वार्ष्णेय के सुपुत्र सुबोध भारतीय द्वारा किया गया और पाठकों को वह सभी उपन्यास जो कि हिंदी पल्प फिक्शन के सुनहरे दौर में पाठकों के दिल में बसे हुए थे, दोबारा उपलब्ध कराने शुरू किए। अब तक 130 से भी ज्यादा उपन्यास प्रकाशित किए जा चुके हैं और हर माह 8 से 10 नई पुस्तकें प्रकाशित की जाती हैं।  

इसके अतिरिक्त यह संस्था सत्यबोध प्रकाशन के नाम से नए लेखकों की पुस्तकों का प्रकाशन भी करती है और उन्हें वह मंच प्रदान करती है जहां से कि वह अपनी प्रतिभा के सामने ला सकते हैं।

आयाम पब्लिकेशंस किसी ग्रुप की एक तीसरे संस्था है जिसमें नॉनफिक्शन यानी कहानी-उपन्यास साहित्य से इतर किताबें प्रकाशित की जाती हैं-जैसे ज्योतिष, मोटिवेशनल या इलाज संबँधी आदि

उच्च कोटि की प्रकाशन क्वालिटी और सारे देश में बनाई गई वितरण व्यवस्था शानदार है।

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